LIBRARIAN'S DAY 12 AUGUST
डॉ एस आर रंगनाथन का जीवन परिचय
शियाली राममृत रंगनाथन (S R Ranganathan) का जन्म 9 अगस्त 1892 को मद्रास
राज्य के तंजूर जिले के शियाली नामक क्षेत्र में हुआ था। जब वे सिर्फ 6
वर्ष के थे, उनके पिता जी का निधन हो गया। उनकी देख-रेख दादा जी ने की।सन् 1916 में रंगनाथन (S R Ranganathan) ने मद्रास क्रिश्चन काॅलेज से गणित
में एम.ए. किया। फिर एक साल का प्रोफेशनल टीचिंग का कोर्स किया। उनका
शिक्षण का विषय गणित और फिजिक्स था। पहली नियुक्त 1917 में गोवर्नमेंट
कॉलेज मंगलोर में हुई। बाद में उन्होने 1920 में गोवर्नमेंट कॉलेज कोयंबटूर
और 1921-23 के दौरान प्रेजिडेंसी कॉलेज मद्रास विश्वविद्यालय में अध्यापन
कार्य किया।
रूचि के विपरीत लाइब्रेरियन के पद के लिए आवेदन और नियुक्ति
उनकी
शिक्षण कार्य में गहन रूचि तो थी परन्तु बहुत कम तनख्वाह होने के कारण
गुजारा ढंग से नहीं हो पा रहा था। भाग्य से कुछ समय बाद मद्रास
विश्वविद्यालय में लाइब्रेरियन की पोस्ट निकली जिसमें ठीक-ठाक वेतन का आॅफर
था। इस प्रकार की नई पोस्ट होने के कारण 900 के लगभग आवेदकों में से हर-एक
अनुभव-हीन था। गणित के विषय के जानकार होने के कारण उनको सलेक्शन में लाभ
मिला। वे मद्रास विश्वविद्यालय के प्रथम पुस्तकालयाध्यक्ष (Librarian) पद
पर नियुक्त हो गये।
शुरू-शुरू में रंगनाथन (S. R. Ranganathan) को यह
कार्य रूचिकर लगा परन्तु एक हफ्ते के अंतराल में ही उनका मन इससे उचट गया।
वे विश्वविद्यालय प्रशासन के पास अपना पुराना शिक्षण कार्य प्राप्त करने
के लिए प्रार्थना पत्र लेकर पहुंच गये। उच्च अधिकारियों ने उनके सामने एक
शर्त रखी कि रंगनाथन लाइब्रेरियनशिप में समकालीन पश्चिमी तौर-तरीकों का
अध्ययन करने के लिए लंदन की यात्रा करेंगे। यदि वापिस आने पर भी उनका इस
कार्य में मन नहीं लगता है तो उनको गणित टीचिंग की पोस्ट पर नियुक्ति दे दी
जायेगी।
लाइब्रेरी साइंस (Library Science) को पूरा जीवन समर्पित
यह
विडंबना ही है जो व्यक्ति अपनी रूचि के विपरीत मजबूरी में इस क्षेत्र में
आया था, यह कार्य उनके मन में इस तरह रच-बस गया कि लाइब्रेरी सांइस को पूरा
जीवन ही समर्पित कर दिया।
उन्होंने अपने 9 माह के प्रवास के दौरान
यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन की क्रॉयडन पब्लिक लाइब्रेरी के प्रमुख
लाइब्रेरियन, बेर्विक सेयर्स के मार्गदर्शन में शिक्षा ग्रहण की। इसी दौरान
उन्होंने सौ से अधिक पुस्तकालयों का दौरा किया और वहां की कार्यविधि देखी।
उन्होंने देखा कि ब्रिटेन में समाज के हर तबके के लिए पुस्तकालय खुला होता
है लेकिन साथ ही साथ उन्होंने यह भी पाया कि हर लाइब्रेरी की अपनी
कार्यविधि, भवन, औजार और सिद्धान्त हैं। उन्होंने महसूस किया कि प्रत्येक
पुस्तकालय का एक समान सिद्धान्त और कार्यविधि होनी चाहिए। इसलिए रंगनाथन ने
एक लाईब्रेरी विज्ञान का एक समान सिद्धान्त बनाने के लिए अपने आपको झोंक
दिया।
सन् 1925 में भारत वापिस आने पर उन्होंने अपने विचारों को पूर्ण पैमाने
पर लागू करना शुरू कर दिया। मद्रास विश्वविद्यालय की 20 साल की सेवाओं के
बाद उपकुलपति के साथ विवाद के बाद उन्होेंने 1945 में स्वेच्छिक रिटायरमेंट
ले लिया और रिसर्च कार्य में जुट गये। इसी बीच, उनको बनारस विश्वविद्यालय
के उपकुलपति एस राधाकृष्णन द्वारा बीएचयू में पुस्तकालय तकनीक और सेवाओं को
व्यवस्थित, सुधार और आधुनिकीकरण करने के लिए निमंत्रित किया गया।
सन्
1947 में वे सर मौरिस ग्वायर के निमंत्रण पर दिल्ली विश्वविद्यालय आ गये।
वहां उनके दिशा-निर्देश में बेचलर और मास्टर और लाइब्रेरी साइंस की शुरूआत
की गयी। सन् 1954 तक वे वहां रहे।
1954-57 के दौरान वे ज्यूरिख, स्विट्जरलैंड में शोध और लेखन में व्यस्त
रहे। 1959 तक विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में अतिथि प्राध्यापक रहे।
1962 में उन्होने बंगलोर में प्रलेखन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया और जीवनपर्यंत इससे जुड़े रहे।
लाइब्रेरी साइंस में योगदान
हालांकि
लाइब्रेरी को वर्गीकरण और सूचीबद्ध करने का रंगनाथन का सर्वोत्तम योगदान
है, उन्होंने पुस्तकालय विज्ञान के सभी पहलुओं पर 50 से अधिक पुस्तकों और
1,000 कागजात प्रकाशित किए।अपने करियर के दौरान, वह 25 से ज्यादा समितियों
के सदस्य या अध्यक्ष थे, जिसमें उन्होंने पुस्तकालय प्रशासन, पुस्तकालयों
की शिक्षा, और पुस्तकालय कानून जैसे मुद्दों पर महत्वपूर्ण कार्य किया था।
यद्यपि
रंगनाथन को व्यापक रूप से भारत में पुस्तकालय विज्ञान (Library Science)
के जनक के रूप में स्वीकार किया जाता है, लेकिन उनकी प्रसिद्धि देश की
सीमाओं को लांघ गयी थी। उन्होंने संयुक्तराष्ट्र लाइब्रेरी के लिए नीति
बनाने में भूमिका निभाई तथा दस्तावेजों को अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण के
अनुरूप ढालने में अपना योगदान दिया।
पुरस्कार और सम्मान
भारत
के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद ने डॉ॰ रंगनाथन के 71वें जन्म
वर्षगाँठ के अवसर पर बधाई देते हुये लिखा, डॉ॰रंगनाथन ने न केवल मद्रास
विश्वविद्यालय ग्रन्थालय को संगठित और अपने को एक मौलिक विचारक की तरह
प्रसिद्ध किया अपितु सम्पूर्ण रूप से देश में पुस्तकालय चेतना उत्पन्न करने
में साधक रहे। भारत सरकार ने रंगनाथन को राव साहिब पुरस्कार से सम्मानित
किया और 1957 में उन्हें पुस्तकालय विज्ञान में उनके बहुमूल्य योगदान के
लिए पद्मश्री से नवाजा गया। रंगनाथन को 1965 में भारत सरकार ने लाइब्रेरी
विज्ञान के राष्ट्रीय अनुसंधान प्रोफेसर के रूप में नामित किया। वे योजना
आयोग और भारत सरकार के विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सलाहकार भी रहे।
डा.
रंगनाथन हमारे देश में लाइब्रेरी और पुस्तकालय विज्ञान की वास्तविक
आवश्यकता की पहचान करने वाले पहले व्यक्ति के रूप में स्वीकार किये जाते
हैं अतः इस क्षेत्र में उनको योगदान को याद करते हुए देश में 12 अगस्त को
राष्ट्रीय लाइब्रेरियन डे के रूप में मनाया जाता है।
यद्यपि डॉ एस आर रंगनाथन का जन्म 9 अगस्त को हुआ था। जब उन्हें
स्कूल में भर्ती कराया गया था, तो उनकी जन्म तिथि 12 अगस्त दर्ज की गई थी।
अतः 12 अगस्त को ही उनकी याद में राष्ट्रीय लाइब्रेरियन डे (National
Librarian’s Day) मनाया जाता है।
एस. आर. रंगनाथन की मृत्यु 27 सितम्बर 1972 को 80 वर्ष की आयु में बंगलोर में हुई थी।कुछ दिलचस्प तथ्य जो कि डॉ॰ रंगनाथन का कार्य के प्रति जनून को दर्शाती हैः
- रंगनाथन सप्ताह में सात दिन और औसतन 16 घंटे कार्य करते थे।
- मद्रास विश्वविद्यालय के लाइब्रेरियन के 20 वर्षों के दौरान उन्होंने कोई छुट्टी नहीं ली।
- वे गांधी जी से बहुत प्रभावित थे। अच्छी आय के वावजूद वे बहुत ही साधारण तरीके से जीवन-यापन करते थे।
- वह आमतौर पर नंगे पांव ही लाइब्रेरी में चलते थे। वे कहा करते थे कि पुस्तकालय उनका घर समान है, और कोई भी अपने ही घर के अंदर जूते नहीं पहनता।
- पुस्तकालय उनके दिल-जान में बसता था। कभी-कभी तो वे अपने काम पर इतना तल्लीन हो जाते थे कि खाने के समय का भी भान नहीें होता था तथा बिना सोये ही पूरी रात बिता देते थे।
- वे समय के बहुत पाबंद थे। वे कभी किसी मीटिंग में देर से नहीं पहुंचे। वे पुस्तकालय भी सबसे पहले पहुंचते और वहां से निकलने वाले सबसे आखिरी व्यक्ति होते थे।
- वे प्राप्त हुए पत्रों के जवाब उसी दिन दे देते थे। वे प्रत्येक पत्र को पढ़ते थे और हस्तलिखित उत्तर ही देते थे।
- वे जीवन के अंतिम वर्षों तक अनुसंधान कार्य में सक्रिय सक्रिय रहे।
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