पुस्तक समीक्षा
आख्या - पथ के दावेदार (उपन्यास)
लेखक - शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय
प्रकाशक- आशा बुक्स ई-1,सोनिया बिहार , दिल्ली-11094
मूल्य- 400
लेखक सामान्य परिचय- आपका जन्म 15 सितम्बर ,1876 को हुगली जिले के देवानंदपुर गावँ में हुआ था । आपने आरंभिक शिक्षा गाँव से ही की और इंट्रेंस टी.ए. जे. स्कूल भागलपुर (ननिहाल) से की। लेकिन आर्थिक तंगी के कारण आप अपनी उच्च शिक्षा पूर्ण नहीं कर सके और आपने अपना लेखन कार्य "देवदास " नामक उपन्यास से प्रारंभ किया और उसके बाद आपने 'बिंदो का लड़का' परिणीता ,पल्ली समाज आदि कई उपन्यास और कहानियाँ लिखी जो मूलरूप से बंगला भाषा में है । 1938 में आपका निधन हो गया।
पुस्तक समीक्षा
इस उपन्यास का प्रारंभ अपूर्व नामक पात्र से होता है जो एक शिक्षित बंगाली ब्राह्मण है और अपने धर्म का पालन करता है। वह अपनी माँ का आज्ञाकारी पुत्र है और माँ के प्रति अटूट श्रद्धा रखता है। नौकरी करने के लिए वह जब बर्मा जाता है तो अपनी साथ तिवारी नामक पात्र को ले जाता है जो उसके शुद्ध खाने - पीने की व्यवस्था करता है । वहाँ उसकी भारती नामक ईसाई लड़की से मुलाकात होती है। जो मानवता धर्म को सर्वोत्तम मानती है और लोगों की सेवा करने में ही अपने आपको धन्य समझती है । इस उपन्यास का जो मुख्य पात्र है वह गिरीश (सव्यसाची) है जिसके इर्द - गिर्द पूरा उपन्यास घूमता है , वही "पथ के दावेदार " नामक समूह का निर्माण करता है जो भारत को गुलामी की जंजीरों से आज़ाद करने के लिए काम करता है । सव्यसाची व्यवहार नारियल के समान है जो ऊपर से सख्त और अंदर से नरम । विषम परिस्थितियों में रहते हुए भी वह अपने कर्तव्य का पालन करते रहे और अपना सम्पूर्ण जीवन पथ का असली दावेदार बनने में लगा देता है ।
यह उपन्यास ह्रदयशस्पर्शी है, जो हमें विषम परिस्तिथियों में भी अडिग बने रहने की प्रेरणा देता है । सव्यसाची और भारती जैसे व्यक्तित्व अपना सम्पूर्ण जीवन मानवता और देशहित में समर्पित कर देता है।
विपिन जैन
(प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक - संस्कृत)
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