मंगलवार, 9 जनवरी 2018

माह की पुस्तक : दिवास्वप्न



लेखक बारे में
 गिजुभाई का जन्म १५ नवंबर १८८५ को हुआ था | गिजुभाई बधेका  गुजराती  भाषा के लेखक और महान शिक्षाशास्त्री थे | उनका पूरा नाम गिरिजाशंकर भगवान जी बधेका था |अपने प्रयोगों  और अनुभवों आधार पर उन्होंने आकल्पन किया था  कि  बच्चों  के सही  विकास के लिए ,किस प्रकार की शिक्षा देनी चाहिए और किस ढंग  से | इसी आधार पर उन्होंने बहुत सी बालोपयोगी कहानियाँ  रचित की | ये कहानियाँ  बालमन , उसकी  कल्पना की उड़ान और उसके खिलंदड़े अंदाज को व्यक्त करती हैं | 
पुस्तक केबारे में  
दिवास्वप्न पुस्तक बच्चों को कैसे शिक्षा दी जाये इसके बारे में गहन एवं प्रायोगिक ज्ञान प्रदान करती है | लेखक ने  स्वयं के अनुभवों को पुस्तक में पिरोया है | लेखक ने मनोवैज्ञानिक रूप से बच्चों में प्रारंभिक शिक्षा को ग्रहण करने हेतु कैसे उत्साहित करे इसके बारे में विशेष उल्लेख किया है | पुस्तक के कुछ अंश पढ़ के ये जाना जा सकता  है | यहाँ कुछ अंश इसप्रकार लिए गए हैं -
इसी बीच प्रधानाध्यापक एकाएक आये और मुझे टोका , "देखिये, यहाँ पास में कोई खेल नहीं खेला  सकता |चाहो, तो दूर उस मैदान में 
चले जाइये | यहाँ दूसरों को तकलीफ होती है |"
मैं लड़को को लेकर मैदान में पहुँचा |  लड़के तो बे-लगाम घोड़ों की तरह उछल-कूद मचा रहे थे | "खेल ! खेल ! हाँ , भैया खेल !" मैंने कहा, "कौन सा खेल खेलोगे ?" एक बोला खो-खो |"  दूसरा बोला , "नहीं कबड्डी |" तीसरा कहने लगा , "नहीं, शेर और पिंजड़े का खेल |"
चौथा बोला ,"तो हम नहीं खेलते |"पाँचवां बोला , रहने दो इसे , हम तो खेलेंगे |"
मैंने लड़कों की ये बिगड़ी आदतें  देखीं | मैंने बोला , "  देखो भई हम तो खेलने आए हैं | 'नहीं ' और 'हाँ ' और 'नहीं  खेलते,' और 'खेलते हैं ,' करना है तो चलो , वापस कक्षा में चलें |"
लड़के बोले ,"नहीं जी, हम तो खेलना  चाहते हैं |'
 ----इसी पुस्तक से 
बाल-मनोविज्ञान और शैक्षिक  विचारों को कथा शैली में प्रस्तुत करने वाले अप्रतिम लेखक गिजुभाई के अध्यापकीय जीवन के अनुभव का सार है यह -" दिवास्वप्न "

पुस्तक समीक्षक : सुधाकर गुप्ता (पुस्तकालयाध्यक्ष केंद्रीय विद्यालय वायुसेना स्थल , नलिया (गुजरात)

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