लेखक बारे में
गिजुभाई का जन्म १५ नवंबर १८८५ को हुआ था | गिजुभाई बधेका गुजराती भाषा के लेखक और महान शिक्षाशास्त्री थे | उनका पूरा नाम गिरिजाशंकर भगवान जी बधेका था |अपने प्रयोगों और अनुभवों आधार पर उन्होंने आकल्पन किया था कि बच्चों के सही विकास के लिए ,किस प्रकार की शिक्षा देनी चाहिए और किस ढंग से | इसी आधार पर उन्होंने बहुत सी बालोपयोगी कहानियाँ रचित की | ये कहानियाँ बालमन , उसकी कल्पना की उड़ान और उसके खिलंदड़े अंदाज को व्यक्त करती हैं |
पुस्तक केबारे में
दिवास्वप्न पुस्तक बच्चों को कैसे शिक्षा दी जाये इसके बारे में गहन एवं प्रायोगिक ज्ञान प्रदान करती है | लेखक ने स्वयं के अनुभवों को पुस्तक में पिरोया है | लेखक ने मनोवैज्ञानिक रूप से बच्चों में प्रारंभिक शिक्षा को ग्रहण करने हेतु कैसे उत्साहित करे इसके बारे में विशेष उल्लेख किया है | पुस्तक के कुछ अंश पढ़ के ये जाना जा सकता है | यहाँ कुछ अंश इसप्रकार लिए गए हैं -
इसी बीच प्रधानाध्यापक एकाएक आये और मुझे टोका , "देखिये, यहाँ पास में कोई खेल नहीं खेला सकता |चाहो, तो दूर उस मैदान में
चले जाइये | यहाँ दूसरों को तकलीफ होती है |"
मैं लड़को को लेकर मैदान में पहुँचा | लड़के तो बे-लगाम घोड़ों की तरह उछल-कूद मचा रहे थे | "खेल ! खेल ! हाँ , भैया खेल !" मैंने कहा, "कौन सा खेल खेलोगे ?" एक बोला खो-खो |" दूसरा बोला , "नहीं कबड्डी |" तीसरा कहने लगा , "नहीं, शेर और पिंजड़े का खेल |"
चौथा बोला ,"तो हम नहीं खेलते |"पाँचवां बोला , रहने दो इसे , हम तो खेलेंगे |"
मैंने लड़कों की ये बिगड़ी आदतें देखीं | मैंने बोला , " देखो भई हम तो खेलने आए हैं | 'नहीं ' और 'हाँ ' और 'नहीं खेलते,' और 'खेलते हैं ,' करना है तो चलो , वापस कक्षा में चलें |"
लड़के बोले ,"नहीं जी, हम तो खेलना चाहते हैं |'
----इसी पुस्तक से
बाल-मनोविज्ञान और शैक्षिक विचारों को कथा शैली में प्रस्तुत करने वाले अप्रतिम लेखक गिजुभाई के अध्यापकीय जीवन के अनुभव का सार है यह -" दिवास्वप्न "
पुस्तक समीक्षक : सुधाकर गुप्ता (पुस्तकालयाध्यक्ष केंद्रीय विद्यालय वायुसेना स्थल , नलिया (गुजरात)
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