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Showing posts from May, 2018

रबीन्द्रनाथ टैगोर

  रबीन्द्रनाथ टैगोर जब कभी भी भारतीय साहित्य के इतिहास की चर्चा होगी तो वह  गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर   के नाम के बिना अधूरी ही रहेगी।  रबीन्द्रनाथ टैगोर  एक विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार तथा चित्रकार थे। भारतीय साहित्य  गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर  के योगदान के लिए सदैव उनका ऋणी रहेगा। वे अकेले ऐसे भारतीय साहित्यकार हैं जिन्हें  नोबेल पुरस्कार  मिला है। वह नोबेल पुरस्कार पाने वाले प्रथम एशियाई और साहित्य में नोबेल पाने वाले पहले गैर यूरोपीय भी थे। वह दुनिया के अकेले ऐसे कवि हैं जिनकी रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान हैं – भारत का राष्ट्र-गान  ‘जन गण मन’   और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान  ‘आमार सोनार बाँग्ला’  रबीन्द्रनाथ टैगोर की ही रचनाएँ हैं।  गुरुदेव   एवं  कविगुरु , रबीन्द्रनाथ टैगोर के उपनाम थे। इन्हें  रबीन्द्रनाथ ठाकुर   के नाम से भी जाना जाता है। रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म  7 May 1861   को कोलकाता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में एक अमीर बंगाली परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम  देवेंद्रनाथ टैगोर  और माता का नाम  शा

महाराणा प्रताप सिंह

महाराणा प्रताप सिंह:एक महाप्रतापी वीर योद्धा की  जीवनी महाराणा प्रताप सिंह  ( ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत १५९७ तदानुसार ९ मई १५४०–१९ जनवरी १५९७)  उदयपुर ,  मेवाड  में  सिसोदिया राजवंश  के राजा थे। उनका नाम  इतिहास  में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने कई सालों तक मुगल सम्राट  अकबर  के साथ संघर्ष किया। महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को कईं बार युद्ध में भी हराया। उनका जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ़ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जयवंत कँवर के घर हुआ था। १५७६ के हल्दीघाटी युद्ध में २०,००० राजपूतों को साथ लेकर राणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के ८०,००० की सेना का सामना किया। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को झाला मानसिंह ने आपने प्राण दे कर बचाया ओर महाराणा को युद्ध भूमि छोड़ने के लिए बोला। शक्ति सिंह ने आपना अश्व दे कर महाराणा को बचाया। प्रिय अश्व  चेतक  की भी मृत्यु हुई। यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें १७,००० लोग मारे गए। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये। महाराणा की हालत दिन-प्रतिदिन चिंताजनक होती चली गई । २५,००० राजपूतों