सोमवार, 10 नवंबर 2025

LIBRARY WEEK FROM 14 NOV.2025-20 NOV.2025


 

पुस्तकालय सप्ताह 


हर वर्ष कि भांति इस वर्ष पी एम श्री केंद्रीय विद्यालय धार में राष्ट्रीय पुस्तकालय सप्ताज का आयोजन किया जा रहा है | जिसके अंतर्गत विभिन्न पुस्तकालयी गतिविधियों का आयोजन विद्यार्थियों में पठन की रूचि जागृत करने के उद्देश्य से किया जा रहा है 


पुस्तकालय सप्ताह के कार्यक्रम की रुपरेखा 


जनजातीय गौरव दिवस 

भगवान् बिरसा मुंडा का जीवन परिचय 


 बात उन दिनों की है, जब भारत पर ब्रिटिश हुकूमत का राज चल रहा था। करीब 200 सालों तक ब्रिटिश शासन रहा, लेकिन ये इतना आसान नहीं था। ब्रिटिशों की नाक में दम करने वाले कई क्रांतिकारी रहे, जिनमें से एक थे बिरसा मुंडा। मात्र 25 साल की उम्र में ही अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले Birsa Munda स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी नेता थे। उन्हें भगवान कहा जाता था। बिरसा मुंडा ने ना सिर्फ देश की आजादी में अपना अहम योगदान दिया, बल्कि आदिवासी समुदाय के लोगों के लिए उन्होंने कई महत्वपूर्ण काम भी किए। कम उम्र में शहीद होने के बावजूद भी वे लोगों के दिलों में हमेशा के लिए अमर हो गए। 

बिरसा मुंडा का जन्म झारखंड राज्य के अंतर्गत उलीहातु ग्राम में 15 नवंबर 1875 ईस्वी में मुंडा जनजाति के आदिवासी दंपत्ति के घर हुआ था। इनके पिता का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम करमी था। बिरसा के पूर्वज चुटू मुंडा और नागू मुंडा थे, जो पूर्ती गोत्र के थे और रांची के उपनगर चुटिया में रहते थे। बाद में इन्होंने ही उलीहातु गांव बसाया था। पूर्वजों के बसाए गांव में लकारी मुंडा का जन्म हुआ, जो Birsa Munda के दादा थे। बिरसा तीन भाई और दो बहनें थीं, जिसमें वे चौथे नंबर के थे। 

भारतीय इतिहास में बिरसा मुंडा एक ऐसे महानायक थे, जिन्होंने अपने क्रांतिकारी चिंतन से 19वीं सदी की आदिवासी समाज की दिशा और दशा बदल दी। बिरसा मुंडा और आदिवासी समाज की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। काम की तलाश में उनके पिता, मां और चाचा चकलद नामक जगह पर आ गए। उनके पिता कानू ने बहुत पहले ही ईसाई धर्म अपना लिया था। Birsa Munda का बचपना चकलद में ही बीता। बाद में वे अयाबहातु में रहे करीब दो साल तक वहां रहने के बाद उन्होंने वहां प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद वह अपनी मौसी के यहां खटंगा में रहने लगा। यहीं पर बिरसा की मुलाकात एक ईसाई प्रचारक से हुई, जो हिंदू धर्म की बुराई करता था। वह इस चिंता में इतना डूबा रहता कि, उसे दिए गए काम बकरियों और भेड़ों को चराने में भी मन नहीं लगता था। फिर उसने जर्मन ईसाई स्कूल में दाखिला लिया और चार सालों तक अध्ययन किया। इसी बीच एक घटना घटी और एक बूढ़ी महिला ने बिरसा मुंडा से कहा कि तुम एक दिन बहुत बड़ा काम करोगे और नाम कमाओगे। बिरसा मुंडा यह समझ चुके थे कि, उनके समाज को अज्ञान और कुरीतियों में धकेला जा रहा है। आदिवासी लोगों को लोभ का लालच देकर मिशनरी में भर्ती कराया जा रहा है। इसका बिरसा ने काफी विरोध किया, जिसके लिए उन्हें स्कूल से भी निकाल दिया गया। 

बिरसाा मुंडा की जिंदगी एक सरदार की तरह गुजर रही थी। सिर्फ इतना अंतर था कि वह धार्मिक प्रभाव में रहने लगा। उनकी लाइफ में कई तरह की घटनाएं घटी और वे 1895 ई. तक पैगंबर बन गए। इसके बाद उन्होंने कई बीमार लोगों को मात्र छूने से ही ठीक कर दिया। इसी प्रकार सास्विक धर्म का उदय हुआ। बिरसा अब पूजा प्रथा वाले लोगों से नफरत करने लगा। उन्होंने बलि प्रथा की निंदा की और बिरसाइल धर्म को खड़ा किया। ऐसा कहा जाता है, कि बिरसा मुर्दों के साथ गाढ़े गए गहनों को निकाला करता था, जिससे उसे एक दिेन पकड़ लिया गया। फिर उसका धर्म बहिष्कार कर दिया गया। उसे पागल बिरसा कहा जाने लगा और एक बार फिर से उसकी प्रतिष्ठा वापस आई। फिर Birsa Munda को एक दिन बिजली की कड़क के साथ ईश्वर के दर्शन हुए और उसे संदेश मिला कि उसे आदिवासी समाज को मुक्ति दिलानी होगी। लोगों का हुजूम बिरसा की ओर चल पड़ा और उसे जनेऊ और खड़ाऊ देखकर, चमत्कारिक कामों को देखकर लोगों को अहसास हो गया कि उसे दुनिया की सारी शक्तियां मिल गई हैं। बिरसा लोगों की बीमाारियों को ठीक कर देता और सभी के साथ मिलकर प्रार्थना करता। 

बिरसा का काम सुधारवादी कामों पर चल रहा था। उसके स्वर में एक वगाबत की चिंगारी गूंजने लगी। एकजुट हुए लोगों में वह अंग्रेजों के विरूध्द काम करने के लिए कहता था। साथ ही लोगों को टैक्स नहीं देने की बात करता था। अंग्रेजों की भूमि नीति ने आदिवासियों की जमीन को छिन्न-भिन्न कर दिया। साहूकारों ने जमीन कब्जाने की शुरूआत कर दी और आदिवासी लोगों को जंगल के संसाधनों पर रोक लगा दी। इन्हीं सब बातों से बिरसा के अंदर एक क्रांतिकारी ने जन्म लिया और उसने लोगों को जोशीले भाषण देना स्टार्ट कर दिया। बिरसा कहा करते थे, कि डरो मत मेरा साम्राज्य शुरू हो गया है। जो लोग मेरे राज्य को मिटाना चाहते हैं, उनकी बंदूके लकड़ियों में बदल जाएंगी। उन्हें रास्ते से हटा दो। इस तरह लोगों में आजादी की एक चिंगारी को जलाकर आए दिन कोई ना कोई विरोध प्रदर्शन होने लगा। पुलिस चौकियों को जलाया जाने लगा और साहूकारों को भी पीटा जाने लगा। ब्रिटिश झंडे की जगह मुंडा का प्रतीक सफेद झंडे को लगा दिया जाता था। अंग्रेज सरकार ने भी बिरसा मुंडा पर 500 रूपए का ईनाम घोषित कर दिया था। इसके बाद उन्हें 24 अगस्त 1895 में पहली बार गिरफ्तार कर लिया गया। दो साल बाद उन्हें जब जेल से रिहा किया गया, तो वे अंडरग्राउंड हो गए और अंग्रेजों के खिलाफ रणनीतियां बनाने लगे।  

बिरसा मुंडा पर सरकार ने इनाम रखा गया, कि जो भी बिरसा को पकड़कर पुलिस को सौंपेगा उसे उचित इनाम दिया जाएगा। इसी लालच के वशीभूत होकर कुछ लोग बिरसा की तलाश में घूमने लगे और एक दिन मौका पाकर उन्हें जंगल से पकड़कर डिप्टी कमिश्ननर को सौंप दिया गया। पांच सौ रूपए के इनाम की लालच में लोगों ने उन्हें गिरफ्तार करवाया। इसके बाद बिरसा को रांची जेल भेज दिया गया। (how did birsa munda died) 9 जून 1990 को हैजा बीमारी की वजह से उन्होंने जेल में अंतिम सांस ली। पुलिस प्रशासन ने उन्हें जल्दी से जलाकर अंतिम संस्कार किया। इस तरह एक युग का अंत हो गया। जाते-जाते बिरसा मुंडा ने लोगों के दिल पर ऐसी छाप छोड़ी कि लोग उन्हें भगवान मानने लगे। आज भी आदिवासी लोग उन्हें भगवान की तरह पूजते हैं और सरकार के द्वारा भी बिरसा मुंडा की जयंती काफी धूमधाम से मनाई जाती है। 

सौजन्य से : बिरसा मुंडा का हिंदी में जीवन परिचय । Birsa Munda biography in hindi

बुधवार, 24 सितंबर 2025

बुधवार, 17 सितंबर 2025

BOOK EXHIBITION


पी एम श्री केन्द्रीय विद्यालय धार (म.प्र.)

आज दिनांक 15 सितंबर 2025 को पीएम श्री केंद्रीय विद्यालय धार पुस्तकालय द्वारा हिन्दी पखवाड़ा  के समापन के अवसर पर हिंदी पुस्तकों की प्रदर्शनी का आयोजन किया गया।




सौजन्य : पुस्तकालय पीएम श्री केन्द्रीय विद्यालय दर  


मंगलवार, 22 अप्रैल 2025

short biography of NetaJi S.C.Bose

 Subhas Chandra Bose 

In the list of the Indian freedom fighters, the name of Subhas Chandra Bose was without a doubt one of the greatest Indian liberation fighters in history. On January 23, 1897, he was born in Cuttack. He was famously known as Netaji. He was a fanatical nationalist whose supreme patriotism made him a hero. Bose was a member of the Indian freedom fighters’ extremist wing. From the early 1920s through the end of 1930, he was the leader of a radical young wing of Congress. Instead of thinking that only armed insurrection could drive the British out of India, Bose disagreed with Gandhi’s nonviolent beliefs. He was the creator of the Forward Bloc and managed to elude the British gaze long enough to reach Germany during world war II. He established the Indian National Army (INA) and, with Japanese assistance, was able to liberate a piece of Indian land from the British in Manipur, but was finally defeated by the British owing to the Japanese surrender. Despite the fact that he is thought to have perished in an aircraft accident on 18th August 1945, his death is still a mystery.

NETA JI SUBHASH CHANDRA BOSE

REFERENCE: https://www.adda247.com/school/freedom-fighters-of-india/ 


Today's thought

Focus on small, positive actions to make a difference. Even small acts of kindness or positive thinking can have a ripple effect, making the day brighter for yourself and others. 

बदलाव लाने के लिए छोटे, सकारात्मक कार्यों पर ध्यान केंद्रित करें। दयालुता या सकारात्मक सोच के छोटे-छोटे कार्य भी एक लहर जैसा प्रभाव डाल सकते हैं, जिससे आपका और दूसरों का दिन उज्जवल बन सकता है।

LIBRARY WEEK FROM 14 NOV.2025-20 NOV.2025

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